Monday, November 17, 2014

प्राकृतिक स्वास्थ्य

चूर्ण
250 ग्राम मैथीदाना
100 ग्राम अजवाईन
50 ग्राम काली जीरी
उपरोक्त तीनो चीजों को साफ-सुथरा करके हल्का-हल्का सेंकना(ज्यादा सेंकना नहीं) तीनों को अच्छी तरह मिक्स करके मिक्सर में पावडर बनाकर अच्छा पैक डिब्बा-शीशी या बरनी में भर लेवें ।
रात्रि को सोते समय चम्मच पावडर एक गिलास पूरा कुन-कुना पानी के साथ लेना है। गरम पानी के साथ ही लेना अत्यंत आवश्यक है लेने के बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है। यह चूर्ण सभी उम्र के व्यक्ति ले सकतें है।
चूर्ण रोज-रोज लेने से शरीर के कोने-कोने में जमा पडी गंदगी(कचरा) मल और पेशाब द्वारा बाहर निकल जाएगी । पूरा फायदा तो 80-90 दिन में महसूस करेगें, जब फालतू चरबी गल जाएगी, नया शुद्ध खून का संचार होगा । चमड़ी की झुर्रियाॅ अपने आप दूर हो जाएगी। शरीर तेजस्वी, स्फूर्तिवाला व सुंदर बन जायेगा ।
‘‘फायदे’’
1. गठिया दूर होगा और गठिया जैसा जिद्दी रोग दूर हो जायेगा ।
2. हड्डियाँ मजबूत होगी ।
3. आॅख का तेज बढ़ेगा ।
4. बालों का विकास होगा।
5. पुरानी कब्जियत से हमेशा के लिए मुक्ति।
6. शरीर में खुन दौड़ने लगेगा ।
7. कफ से मुक्ति ।
8. हृदय की कार्य क्षमता बढ़ेगी ।
9. थकान नहीं रहेगी, घोड़े की तहर दौड़ते जाएगें।
10. स्मरण शक्ति बढ़ेगी ।
11. स्त्री का शारीर शादी के बाद बेडोल की जगह सुंदर बनेगा ।
12. कान का बहरापन दूर होगा ।
13. भूतकाल में जो एलाॅपेथी दवा का साईड इफेक्ट से मुक्त होगें।
14. खून में सफाई और शुद्धता बढ़ेगी ।
15. शरीर की सभी खून की नलिकाएॅ शुद्ध हो जाएगी ।
16. दांत मजबूत बनेगा, इनेमल जींवत रहेगा ।
17. नपुसंकता दूर होगी।
18. डायबिटिज काबू में रहेगी, डायबिटीज की जो दवा लेते है वह चालू रखना है। इस चूर्ण का असर दो माह लेने के बाद से दिखने लगेगा । जिंदगी निरोग,आनंददायक, चिंता रहित स्फूर्ति दायक और आयुष्ययवर्धक बनेगी । जीवन जीने योग्य बनेगा ।



Sunday, May 19, 2013

हस्त मुद्राओं द्वारा चिकित्सा


हमारा शरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है। शरीर को स्वस्थ बनाए रखने की शक्ति शरीर में निहित है। बस जरूरत है उसे जानकर अभ्यास करने की। शरीर पंचतत्वों-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। जब तक शरीर में ये तत्व संतुलित रहते हैं, तब तक शरीर निरोगी रहता है। यदि इन तत्वों में असंतुलन हो जाए तो नानाप्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इन तत्वों को हम यदि पुन: संतुलित कर दें तो शरीर निरोगी हो जाता है।
हस्तमुद्रा चिकित्सा के अनुसार हाथ की पांचों अंगुलियां पांचों तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के माध्यम से इन तत्वों को बल देती रहती है। अंगूठे में अग्नि तत्व, तर्जनी में वायु तत्व, मध्यमा में आकाश तत्व, अनामिका में पृथ्वी तत्व व कनिष्ठा में जल तत्व की ऊर्जा का केन्द्र है। इस प्रकार अंगुलियों को आपस में मिलाकर मुद्राओं को बनाया जाता है। हमारे ऋषियों ने इस रहस्य को साधना के द्वारा जाना और इसका प्रचार-प्रसार किया जिसके प्रतिदिन अभ्यास से व्यक्ति रोगमुक्त होकर स्वस्थ रह सके।

ये अद्भुत मुद्राएं करते ही अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं। पद्मासन, स्वस्तिकासन, सुखासन, वज्रासन में करने 
से जिस रोग के लिए जो मुद्रा वर्णित है उसको इस भाव से करें कि मेरा रोग ठीक हो रहा है, तब ये मुद्राएं शीघ्रता से रोग को दूर करने में लग जाती हैं। बिना भाव के लाभ अधिक नहीं मिल पाता। दिन में 20-30 मिनट तक एक मुद्रा को किया जाए तो पूरा लाभ प्राप्त हो जाता है। एक बार में न हो सके तो दो-तीन बार में कर लें। किसी भी मुद्रा में जिन अंगुलियों का प्रयोग नहीं करते उन्हें सीधा करके रख लेते हैं और हथेली को थोड़ा टाइट रखते हैं। यों तो मुद्राओं की संख्या अनेक है, किन्तु यहां हम आपको कुछ उपयोगी मुद्राओं के बारे में बता रहे हैं-


विधि: अंगूठे को तर्जनी अंगुली के सिरे पर लगाएं व बाकी तीनों अंगुलियाँ सीधी रहेंगी। 
ज्ञान-मुद्रा


लाभ: मस्तिष्क के स्नायु को बल देकर यह स्मरण शक्ति, एकाग्रता शक्ति, संकल्प शक्ति को बढ़ाती है, बुद्धि का विकास करती है, पढ़ाई में मन लगने लगता है, सिर दर्द व नींद न आना दूर होता है, मन की चंचलता दूर होकर क्रोध, चिड़चिड़ापन, तनाव, चिंता को दूर कर व्यक्ति को आध्यात्मिक बना देती है।

नोट: सात्विक भोजन करने से शीघ्रता से लाभ देती है।

पृथ्वी-मुद्रा
विधि: अनामिका अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से लगाकर बाकी अंगुलियां सीधी रखें। 

लाभ: दुबर्लता को दूर कर वजन को बढ़ाती है, शरीर में स्फूर्ति, कान्ति एवं तेज बढ़ाकर जीवनी शक्ति का विकास करती है, पाचन तन्त्र स्वस्थ बनाती है।










विधि: कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग पर लगाकर बाकी अंगुलियों को सीधा रखने से बनती है।  


लाभ: चर्मरोग, रक्त विकार दूर करती है, शरीर में रूखापन दूर कर त्वचा को चमकीली व मुलायम बनाती है, चेहरे की सुन्दरता को बढ़ा देती है।

नोट: कफ प्रकृति वाले व्यक्ति इसका अभ्यास ज्यादा न करें।


Saturday, May 4, 2013

योगाभ्यास - विषयो से मन की निवृति

योगाभ्यास के बिना विषयो से मन की निवृति असम्भव है तथा इसके निरंतर न होने से भगवान का स्मरण भी असंभव है |

Sunday, April 17, 2011

प्राणायाम - सावधानियाँ

 

  • सबसे पहले तीन बातों की आवश्यकता है, विश्वास, सत्यभावना, दृढ़ता।
  • प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर अन्दर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए।
  • बैठने के लिए नीचे अर्थात भूमि पर आसन बिछाना चाहिए।
  • बैठते समय हमारी रीढ़ की हड्डियाँ एक पंक्ति में अर्थात सीधी होनी चाहिए।
  • सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें, मगर जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें।
  • प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए।
  • प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा।
  • प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें।
  • ह्‍र सांस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए।
  • जिन लोगो को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिये।
  • यदि आँप्रेशन हुआ हो तो, छः महीने बाद ही प्राणायाम का धीरे धीरे अभ्यास करें।
  • हर सांस के आने जाने के साथ मन ही मन में ओम् का जाप करने से आपको आध्यात्मिक एवं शारीरिक लाभ मिलेगा, और प्राणायाम का लाभ दुगुना होगा।
  • सांसे लेते समय किसी एक चक्र पर ध्यान केंन्द्रित होना चाहिये नहीं तो मन कहीं भटक जायेगा, क्योंकि मन बहुत चंचल होता है।
  • सांसे लेते समय मन ही मन भगवान से प्रार्थना करनी है कि "हमारे शरीर के सारे रोग शरीर से बाहर निकाल दें और हमारे शरीर में सारे ब्रह्मांड की सारी ऊर्जा, ओज,तेजस्विता हमारे शरीर में डाल दें"।
  • ऐसा नहीं है कि केवल बीमार लोगों को ही प्राणायाम करना चाहिए, यदि बीमार नहीं भी हैं तो सदा निरोगी रहने की प्रार्थना के साथ प्राणायाम करें।

 भस्त्रिका प्राणायाम

सुखासन सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। नाक से लंबी सांस फेफडो मे ही भरे, फिर लंबी सांस फेफडो से ही छोडें| सांस लेते और छोडते समय एकसा दबाव बना रहे| हमें हमारी गलतीयाँ सुधारनी है, एक तो हम पूरी सांस नही लेते; और दुसरा हमारी सांस पेट में चाली जाती है| देखिये हमारे शरीर में दो रास्ते है, एक ( नाक, श्वसन नलिका, फेफडे), और दूसरा( मुँह्, अन्ननलिका, पेट्)| जैसे फेफडोमें हवा शुद्ध करने की प्रणली है,वैसे पेट में नही है| उसीके का‍रण हमारे शरीर में आँक्सीजन की कमी मेहसूस होती है| और उसेके कारण हमारे शरीर में रोग जडते है| उसी गलती को हमें सुधारना है|जैसे की कुछ पाने की खुशि होती है,वैसे ही खुशी हमे प्राणायाम करते समय होनी चाहिये|और क्यो न हो सारी जिन्दगी का स्वास्थ आपको मिल रहा है| आप के पन्चविध प्राण सशक्त हो रहे है, हमारे शरीर की सभी प्रणालियाँ सशक्त हो रही है |

लाभ

  • हमारा हृदय सशक्त बनाने के लिये है|
  • हमारे फेफडों को सशक्त बनाने के लिये है|
  • मस्तिष्क से सम्बंधित सभी व्याधिओं को मिटा ने के लिये भी यह लाभदायक है |
  • पर्किनसन,प्यारालेसिस,लुलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बंधित सभी व्यधिओं को मिटाने के लिये |
  • भगवान से नाता जोडने के लिये|

कपालभाती प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। और सांस को बाहर फेंकते समय पेट को अन्दर की तरफ धक्का देना है, इस में सिर्फ् सांस को छोडते रेहना है| दो सांसो के बीच अपने आप सांस अन्दर चली जायेगी जान-बुजके सांस को अन्दर नही लेना है| कपाल केहते है मस्तिषक के अग्र भाग को, भाती केहते है ज्योति को,कान्ति को,तेज को; कपालभाती प्राणायाम करने लगतार करने से चहरे का लावण्य बढाता है| कपालभाती प्राणायाम धरती की सन्जीवनि कहलाता है| कपालभाती प्राणायाम करते समय मुलाधार चक्र पे ध्याने केन्द्रीत करना है| इससे मूलाधार चक्र जाग्रत हो के कुन्ड्लीनि शक्ति जग्रुत हो ने मे मदद होती है| कपालभाती प्राणायाम करते समय ऐसा सोचना है की, हमारे शरीर के सारे नीगेटीव्ह तत्व शरीर से बहर जा रहे है| खाना मिले ना मिले मगर रोज कमसे कम ५ मीनिट कपालभाती प्राणायाम करना ही है,यह द्रढ संक्लप करना है|

लाभ

  • बालो की सारी समस्याओँ का समाधान प्राप्त होता है|
  • चेहरे की झुरीयाँ,आखो के नीचे के डार्क सर्कल मिट जायेंगे|
  • थायराँइड की समस्या मिट जाती है|
  • सभी प्रकारके चर्म समस्या मिट जाती है|
  • आखो की सभी प्रकारकी समस्या मिट जाती है,और आखो की रोशनी लौट आती है|
  • दातों की सभी प्रकारकी समस्या मिट जाती है, और दातों की खतरनाक पायरीया जैसी बीमारी भी ठीक हो जाती है|
  • कपालभाती प्राणायाम से शरीर की बढी चरबी घटती है, यह इस प्राणायाम का सबसे बडा फायदा है|
  • कब्ज, अँसीडिटी, गँस्टीक जैसी पेट की सभी समस्याएँ मिट जाती हैं |
  • युट्रस(महीलाओ) की सभी समस्याओँ का समाधान होता है|
  • डायबिटीस संपूर्णतया ठीक होता है|
  • कोलेस्ट्रोल को घटाने में भी सहायक है|
  • सभी प्रकार की अँलार्जीयाँ मिट जाती है|
  • सबसे खतरनाक कँन्सर रोग तक ठीक हो जाता है ।
  • शरीर में स्वतः हिमोग्लोबिन तैयार होता है|
  • शरीर मे स्वतः कँल्शीयम तैयार होता है|
  • किडनी स्वतः स्वच्छ होती है, डायलेसिस करने की जरुरत नहीं पडती|

बाह्य प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। सांस को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद सांस बाहर ही रोके रखने के बाद तीन बन्ध लगाते है|
१) जालंधर बन्ध :- गले को पूरा सिकुड के ठोडी को छाती से सटा कर रखना है |
२) उड़ड्यान बन्ध :- पेट को पूरी तरह अन्दर पीठ की तरफ खीचना है|
३) मूल बन्ध :- हमारी मल विसर्जन करने की जगह को पूरी तरह ऊपर की तरफ खींचना है|

लाभ्

  • कब्ज, अँसीडीटी,गँसस्टीक, जैसी पेट की सभी समस्याएँ मिट जाती हैं |
  • हर्निया पूरी तरह ठीक हो जाता है|
  • धातु,और पेशाब से संबंधित सभी समस्याएँ मिट जाती हैं |
  • मन की एकाग्रता बढती है|
  • व्यंधत्व (संतान हीनता) से छुट्कारा मिलने में भी सहायक है ।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने(नोस्टील) से ही करनी है, नाक का दाया नथुना बंद करें व बाये से लंबी सांस लें, फिर बाये को बंद करके, दाया वाले से लंबी सांस छोडें...अब दाया से लंबी सांस लें व बाये वाले से छोडें...याने यह दाया-दाया बाया-बाया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं| सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच मे स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए| और मन ही मन मे सांस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए|हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है| बायी नाडी को चन्द्र( इडा, गन्गा ) नाडी,और दायीं नाडी को सुर्य ( पीन्गला, यमुना ) नाडी केहते है| चन्द्र नाडी से थण्डी हवा अन्दर जती है, और सुर्य नाडी से गरम नाडी हवा अन्दर जती है|थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है| इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है|

लाभ्

  • हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है|
  • हार्ट की ब्लाँकेज खुल जाते है|
  • हाय,लो दोन्हो रक्त चाप ठिक हो जायेंगे|
  • आर्थराटीस,रोमेटोर आर्थराटीस,कार्टीलेज घीसना ऐसी बीमारीओंको ठीक हो जाती है|
  • टेढे लीगामेंटस सीधे हो जायेंगे|
  • व्हेरीकोज व्हेनस ठीक हो जाती है|
  • कोलेस्टाँल,टाँक्सीनस,आँस्कीडण्टस इसके जैसे विजतीय पदार्थ शरीर के बहार नीकल जाते है|
  • सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है|
  • कीडनी नँचरली स्वछ होती है, डायलेसीस करने की जरुरत नही पडती|
  • सबसे बडा खतरनाक कँन्सर तक ठीक हो जाता है|
  • सभी प्रकारकी अँलार्जीयाँ मीट जाती है|
  • मेमरी बढाने की लीये|
  • सर्दी, खाँसी, नाक, गला ठीक हो जाता है|
  • ब्रेन ट्युमर भी ठीक हो जाता है|
  • सभी प्रकार के चर्म समस्या मीट जाती है|
  • मस्तिषक के सम्बधित सभि व्याधिओको मीटा ने के लिये|
  • पर्किनसन,प्यारालेसिस,लुलापन इत्यादी स्नयुओ के सम्बधित सभि व्याधिओको मीटा ने के लिये|
  • सायनस की व्याधि मीट जाती है|
  • डायबीटीस पुरी तरह मीट जाती है|
  • टाँन्सीलस की व्याधि मीट जाती है|

भ्रामरी प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। दोनो अंगुठोसे कान पुरी तरह बन्द करके, दो उंगलीओको माथे पे रख के, छः उंगलीया दोनो आँखो पर रख दे| और लंबी सास लेके कण्ठ से भवरें जैसा (म……)आवाज नीकालना है|

लाभ

  • पॉझीटीव्ह एनर्जी तैयार करता है|
  • सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है|
  • मायग्रेन पेन, डीप्रेशन,ऑर मस्तिषक के सम्बधित सभि व्यधिओको मीटा ने के लिये|
  • मन और मस्तिषक की शांती मीलती है|
  • ब्रम्हानंद की प्राप्ती करने के लीये|
  • मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढाने के लिये|

उद्गीथ प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। और लंबी सास लेके मुँह से ओउम का जाप करना है|

लाभ

  • पॉझीटीव्ह एनर्जी तैयार करता है|
  • सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है|
  • मायग्रेन पेन, डीप्रेशन,ऑर मस्तिषक के सम्बधित सभि व्यधिओको मीटा ने के लिये|
  • मन और मस्तिषक की शांती मीलती है|
  • ब्रम्हानंद की प्राप्ती करने के लीये|
  • मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढाने के लिये|

प्रणव प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। और मन ही मन मे एकदम शान्त बैठ के लंबी सास लेके ओउम का जाप करना है|

लाभ

  • पॉझीटीव्ह एनर्जी तैयार करता है|
  • सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है|
  • मायग्रेन पेन, डीप्रेशन और मस्तिषक के सम्बधित सभी व्यधिओको मिटाने के लिये|
  • मन और मस्तिष्क की शांति मिलती है|
  • ब्रम्हानंद की प्राप्ती करने के लिये|
  • मन और मस्तिष्क की एकाग्रता बढाने के लिये|

अग्नीसार क्रिया

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। सास को पुरी तरह बाहर नीकल के बाद बाहर ही रोक के पेट को आगे पीछे करना है|

लाभ

  • कब्ज, अँसीडीटी,गँसस्टीक, जैसी पेट सभी समस्या मिट जाती है|
  • हर्निया पुरी तरह मिट जाता है|
  • धातु,और पेशाब के संबंधीत सभी समस्या मिट जाता है|
  • मन की एकाग्रता बढेगी|
  • व्यंधत्व से छुट्कार मिल जायेगा|

विशेष प्राणायाम

उज्जायी प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। सीकुडे हुवे गले से सास को अन्दर लेना है|

लाभ

  • थायराँइड की शिकायत से आराम मिलता है|
  • तुतलाना, हकलाना,ये शिकायत भी दूर होती है|
  • अनिद्रा,मानसिक तनाव भी कम करता है|
  • टी•बी•(क्षय)को मिटाने मे मदद होती है|
  • गुंगे बच्चे भी बोलने लगेंगे|

शितकारी प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। जीव्हा टालु को लगाके दोनो जबडे बन्द करके सांस लेना, और उस छोटी सी जगह से हवा को अन्दर खिचना है| और मुँह बन्द करके  सांस को नाक से बाहर छोड दे| जैसे ए• सी• के फिन्स होते है,उससे ए• सी• के काँम्प्रेसर पर कम दबाव आता है, और गरम हवा बाहर फेकने से हमरी कक्षा की हवा ठंडी हो जाती है| वैसे ही हमे हमारे शरीर की अतिरीक्त गर्मी कम कर सकते है|

लाभ

  • शरीर की अतीरिक्त गरमी को कम करने के लिये|
  • ज्यादा पसीना आने की शीकायत से आराम मीलता है|
  • पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये|
  • शरीर पर कहा भी आयी हुँवी फोडी को मीटाने की लीये|

शितली प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। हमारे मुँह का " ० " आकार करके उससे जीव्हा को बाहर निकालना,हमरी जीव्हा भी " ० " आकार की हो जायेगी, उसी भाग से हवा अन्दर खीचनी है|और मुँह बन्द करके से सांस को नाक से बाहर छोड दे|

लाभ

  • शरीर की अतीरिक्त गरमी को कम करने के लिये|
  • ज्यादा पसीना आने की शीकायत से आराम मीलता है|
  • पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये|
  • शरीर पर कहा भी आयी हुँवी फोडी को मीटाने की लीये|


Monday, April 19, 2010

लम्बे और गहरे श्वास के लाभ

प्राणायाम प्राण याने सांस आयाम याने दो सांसो मे दूरी बढ़ाना, श्‍वास और नि:श्‍वास की गति को नियंत्रण कर रोकने व निकालने की क्रिया को कहा जाता है।

श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं । हम सांस लेते है तो सिर्फ़ हवा नही खीचते तो उसके साथ ब्रह्मान्ड की सारी उर्जा को उसमे खींचते है। अब आपको लगेगा की सिर्फ़ सांस खीचने से ऐसा कैसा होगा। हम जो सांस फेफडो मे खीचते है, वो सिर्फ़ सांस नही रहती उसमे सारे ब्रम्हन्ड की सारी उर्जा समायी रहती है। मान लो जो सांस आपके पूरे शरीर को चलाना जनती है, वो आपके शरीर को दुरुस्त करने की भी ताकत रखती है। प्राणायाम निम्न मंत्र (गायत्री महामंत्र) के उच्चारण के साथ किया जाना चाहिये।

ॐ भूः भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ ।


लम्बे और गहरे श्वास के लाभ

तनाव कम होता है.
कार्य क्षमता बढ्ती है.
आत्मविश्वास बढ्ता है.
भावुकता नियंत्रित होती है.
रक्तचाप नियंत्रित होता है.
आंतरिक प्रदूषण दूर होता है.
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ्ती है.
शांति और ताजगी प्राप्ति होती है.
अनावश्यक चिंतन दूर होता है.
स्मरण शक्ति और एकाग्रता बढ्ती है.